Friday, September 12, 2008

बेंडिट क्वीन का राग देस पर आधारित सुंदर गीत ....

यह गाना उस फ़िल्म से है जिसके गाने बहोत ही खूबसूरत होने के बावजूद ज्यादा लोकप्रिय नही हुए। फ़िल्म है "बेंडिट क्वीन "। शेखर कपूर दिग्दर्शीतएक अद्भूत फ़िल्म जिसको ज्यादातर लोग हजम नही कर पाये थे । सीमा बिस्वास का career best performence. जाने सीमा बिस्वास ने जी भर के अपना अभिनय कर दिया , फ़िल्म को जी लिया। 9 september 1994 को रिलीज़ हुई यह फ़िल्म, फूलन देवी पर आधारित थी , हालाकि इस फ़िल्म के कुछ द्रश्यो को सेन्सरकर दिया था और कुछ संवादों को भी, फ़िर भी यह फ़िल्म देखते समय कई लोगोने संवादों को लेकर उंगली उठायी और विरोध भी किया। पर यह फ़िल्म आज एक इतिहास है । neutral mind से यदि यह फ़िल्म देखे तो इस फ़िल्म की artistic value और brilliancy समज आती है।


बात करे फ़िल्म के संगीत की,
इस फ़िल्म में महान सूफी और कव्वाली गायक उस्ताद नुसरत फतह अली खान का संगीत था , रोजर व्हाइट ने भी उनका साथ दिया था । नुसरत साब के द्वारा गाये गए कुछ महान गायनो में से तीन गाने आपको इस फ़िल्म में से मिलेंगे । इन तीन गानों में से पहला गाना में आपको आज सुना रहा हूँ ।


यह गाना राग देस पर आधारित है । नुसरत साहब की बुलंद आवाज़ और शास्त्रीय संगीत पर उसका प्रभाव उभर उभर कर आता है (खास कर शुरुआत के और interlutes के आलाप के दौरान) । साथ ही में तबला का सुंदर प्रयोग।
शुरुआत नुसरत साहब की आलाप, बांसुरी और कोरस से होती है और फ़िर.... नुसरत साहब का कमाल ....


इस गाने के बारे में ज्यादा सोचने से बेहतर है इसे सुन लिया जाय ... जितनी बार सुनेंगे कुछ नया मिलेगा इस गाने से...

तो हाज़िर है " मोरे सैयां तो है परदेस...."



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ये रहे गाने के बोल ......

(कोरस)
सावन आया रिम झीम सांवरे
आए बादल कारे कारे
मतवारे प्यारे प्यारे
मोरे अंगना
झूम के
घिर घिर आए ओह्न्दी ओह्न्दी
देखो मस्त घटाएँ
फूर फूर आज उडाये आँचल
मोरा सर्द हवाएं
डारी डारी पे भवरा घूमके
आए कलियों के मुखड़े चुमके
जिया मोरा जलाएं हाय रे
प्यारी प्यारी रुत सावली

(नुसरत साहब )
मोरे सैयां तो है परदेस
में क्या करू सावन को
सुना लागे सजन बिन देस
में ढूंढु साजन को
मोरे सैयां.....

देखू राहे चढ़ के अटरिया
जाने कब आजाये सावारिया
जब से गए मोरी ली ना खबरिया
छोटा पनघट फूटी गगरियाँ
सूना लागे.....

क्यों पहनू में पग में पायल
मन तो है मुज बिरहन का घायल
नींद से खाली मोरी अखियाँ बोजल
रोते रोते बह गया काजल
सूना लागे .....

Saturday, September 6, 2008

स्व. परेश भट्ट की रचना, उन्ही की आवाज़ में... एक दुर्लभ गुजराती गीत...

गुजराती सुगम संगीत के क्षेत्र में कुछ ऐसे कला उपासक हुए जिन्हें बहोत कम लोग जानते है, पर जो भी जानते है वो आज भी उन्हें उतने ही सन्मान से याद करते है। स्व परेश भट्ट उनमें से एक है । उच्च कोटि के कोम्पोसर और श्रेष्ट गायक। बहोत कम उम्र में उनका देहांत हो जानेकी वजह से उनकी चंद रचनायें ही प्राप्य है और वो भी अति दुर्लभ है। वह एक विशिष्ट कोम्पोसर थे । वो अपने सभी compositions में कुछ नवतर प्रयोग करते थे । वैसा ही एक सुंदर प्रयोग उन्हों ने प्रस्तुत गाने में किया है ।


परेश भट्ट बहोत ही सुंदर गायक भी थे । गुजराती सुगम संगीत में मेरे सबसे पसंदीदा गायक। क्या गाया है इस गीत को, गाना सुनते वक्त उनकी आवाज़ मानो, गूंजती है हर तरफ़ । और वैसे भी जब ख़ुद composer ख़ुद अपना ही गाना गाता है तो वो गाने की मीठास कुछ और ही होती है ( जैसे की मदन मोहनजी की आवाज़ में "माए री " या फ़िर रहमान की आवाज़ में " वंदे मातरम्") ।


इस गाने को कवि श्री राजेंद्र शुक्ल ने लिखा है । श्री राजेंद्र शुक्ल एक उच्च कोटि के मूर्धन्य कवि है। उनके बारे में ज्यादा लिख नही सकता क्योंकि शब्द ही नही है, बस नाम ही काफ़ी है।

इस गाने की विशेषता यह है की, यह गाने की हर एक कड़ी भारत देश की विभूति या संत को संबोधित करती है। और वह कड़ी का composition उस प्रान्त से जुड़े संगीत का चित्र पेश करेगा (जैसे राजस्थान में मांड राग )

यह गाना लाइव रिकॉर्ड किया गया है । इसी लिए sound quality उतनी अच्छी नही है । गाने के बीच में परेश भट्ट अपने अंदाज़ में कुछ टिप्पणियां करते सुनाई देंगे । हारमोनियम, तबला, बांसूरी और परेश भट्ट.... और गाना.... i have no words to describe...


तो लीजिये सुनिए यह दुर्लभ और बेहद खूबसूरत गाना ....

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ये रहे गाने के शब्द ..... (अभी सिर्फ़ गुजराती में लिख रहा हूँ ...)

હજો હાથ કરતાલ ને ચિત્ત ચાનક;
તળેટી સમીપે હજો ક્યાંક થાનક.

લઈ નાંવ થારો સમયરો હળાહળ,
ધર્યો હોઠ ત્યાં તો અમિયેલ પાનક.

સુખડ જેમ શબ્દો ઊતરતા રહે છે,
તિલક કોઈ આવીને કરશે અચાનક.

અમે જાળવ્યું છે ઝીણેરા જતનથી,
મળ્યું તેવું સોંપીશું કોરું કથાનક.

છે ચન જેનું એનાં જ પંખી ચૂગે આ,
રખી હથ્થ હેઠા નિહાળે છે નાનક.

નયનથી નીતરતી મહાભાવ મધુરા,
બહો ધૌત ધારા બહો ગૌડ ગાનક.

શબોરોજ એની મહેકનો મુસલસલ,
અજબ હાલ હો ને અનલહક હો આનક.

आप ही समज जायेंगे पंक्ति और उसके सन्दर्भ को....