Saturday, September 6, 2008

स्व. परेश भट्ट की रचना, उन्ही की आवाज़ में... एक दुर्लभ गुजराती गीत...

गुजराती सुगम संगीत के क्षेत्र में कुछ ऐसे कला उपासक हुए जिन्हें बहोत कम लोग जानते है, पर जो भी जानते है वो आज भी उन्हें उतने ही सन्मान से याद करते है। स्व परेश भट्ट उनमें से एक है । उच्च कोटि के कोम्पोसर और श्रेष्ट गायक। बहोत कम उम्र में उनका देहांत हो जानेकी वजह से उनकी चंद रचनायें ही प्राप्य है और वो भी अति दुर्लभ है। वह एक विशिष्ट कोम्पोसर थे । वो अपने सभी compositions में कुछ नवतर प्रयोग करते थे । वैसा ही एक सुंदर प्रयोग उन्हों ने प्रस्तुत गाने में किया है ।


परेश भट्ट बहोत ही सुंदर गायक भी थे । गुजराती सुगम संगीत में मेरे सबसे पसंदीदा गायक। क्या गाया है इस गीत को, गाना सुनते वक्त उनकी आवाज़ मानो, गूंजती है हर तरफ़ । और वैसे भी जब ख़ुद composer ख़ुद अपना ही गाना गाता है तो वो गाने की मीठास कुछ और ही होती है ( जैसे की मदन मोहनजी की आवाज़ में "माए री " या फ़िर रहमान की आवाज़ में " वंदे मातरम्") ।


इस गाने को कवि श्री राजेंद्र शुक्ल ने लिखा है । श्री राजेंद्र शुक्ल एक उच्च कोटि के मूर्धन्य कवि है। उनके बारे में ज्यादा लिख नही सकता क्योंकि शब्द ही नही है, बस नाम ही काफ़ी है।

इस गाने की विशेषता यह है की, यह गाने की हर एक कड़ी भारत देश की विभूति या संत को संबोधित करती है। और वह कड़ी का composition उस प्रान्त से जुड़े संगीत का चित्र पेश करेगा (जैसे राजस्थान में मांड राग )

यह गाना लाइव रिकॉर्ड किया गया है । इसी लिए sound quality उतनी अच्छी नही है । गाने के बीच में परेश भट्ट अपने अंदाज़ में कुछ टिप्पणियां करते सुनाई देंगे । हारमोनियम, तबला, बांसूरी और परेश भट्ट.... और गाना.... i have no words to describe...


तो लीजिये सुनिए यह दुर्लभ और बेहद खूबसूरत गाना ....

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ये रहे गाने के शब्द ..... (अभी सिर्फ़ गुजराती में लिख रहा हूँ ...)

હજો હાથ કરતાલ ને ચિત્ત ચાનક;
તળેટી સમીપે હજો ક્યાંક થાનક.

લઈ નાંવ થારો સમયરો હળાહળ,
ધર્યો હોઠ ત્યાં તો અમિયેલ પાનક.

સુખડ જેમ શબ્દો ઊતરતા રહે છે,
તિલક કોઈ આવીને કરશે અચાનક.

અમે જાળવ્યું છે ઝીણેરા જતનથી,
મળ્યું તેવું સોંપીશું કોરું કથાનક.

છે ચન જેનું એનાં જ પંખી ચૂગે આ,
રખી હથ્થ હેઠા નિહાળે છે નાનક.

નયનથી નીતરતી મહાભાવ મધુરા,
બહો ધૌત ધારા બહો ગૌડ ગાનક.

શબોરોજ એની મહેકનો મુસલસલ,
અજબ હાલ હો ને અનલહક હો આનક.

आप ही समज जायेंगे पंक्ति और उसके सन्दर्भ को....

4 comments:

નીરજ શાહ said...

સુંદર ગીત.. રાજેન્દ્ર શુક્લનાં પોતાના સ્વરમાં પઠન સાંભળેલ એની યાદ તાજી થઈ ગઈ..

"PHA" Interntional - A Group of Differently Ables said...

આહાહહાહાહાહાઆ................. પરમાનંદ છવાય ગયો મારા મન અને દિલમાં........ વાહ ડોકટર વાહ

"PHA" Interntional - A Group of Differently Ables said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

good.... nice to hear in paresh's voice.........